Thursday, 5 March 2015

मेरे जाने के बाद..


मेरे ख्यालों को अपने ख्यालों में पनाह देना,
मैं जब न रहूँ तो मेरी कहानी सुना देना।
मेरा बचपन आज भी कहीं माँ की आँखों में खिलखिलाता होगा,
कि जो उसकी आदत थी मुझे भीगे बादाम हर सुबह देना।
मेरी कहानी की गहराई में जाओगे तो रो पड़ोगे,
बिना पढ़े हर ख़त मेरे महबूब का तुम जला देना।
ताल्लुक जो मेरा रहा है कुछ रहमती इंसानों से,
बस किसी तरह उन तक मेरे जाने की ख़बर पहुंचा देना।
जो तुम्हें भरे बाज़ार में एक सफ़ेद चादर न मिल पाए,
तो माँ की कोई पुरानी ओढ़नी ओढ़ा देना।
फक़त एक बार मेरे महबूब को मेरी रुह के करीब ले आना,
फिर चाहे मुझे मिट्टी में दफना देना या गंगा में बहा देना।

- कविराज 

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