एक साया सा मेरे आसपास घूमता है,
शायद तलाश में किसी की झूमता है..
पल भर को वो रुकता है कहीं,
किसी की झलक जैसे मिली हो यहीं..
एक अधूरा सपना पूरा करने को,
शायद वो उस शख्स को ढूंढता है..
यूँ बाहें फैलाये.. आँखों को मूंदे,
उसे किसी हमसफ़र का इंतज़ार है..
उसकी आँखों में देखता हूँ.. तो बस प्यार ही प्यार है।
अचानक.. वो साया कहीं दूर चला गया,
शायद प्यार से उसका विश्वास डगमगा गया,
सोचता हूँ कहीं ये खुद का कोई संदेसा तो नहीं था..
और वो साया.. वो साया कहीं मेरा तो नहीं था..
-कविराज
(Image courtesy : wellwai.com)
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